हर गुनाह कबूल है हमें, बस,सजा देने वाला बेगुनाह हो ! अपनी मंज़िल पे पहुँचना भी, खड़े रहना भी, कितना मुश्किल है बड़े हो के बड़े रहना भी ! सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते, हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते ! सीने में जलन,आँखो में तूफान सा क्यू है, इस शहर में हर श्कश परेशान सा क्यू है ! पूछते हैं वो हमसे, 'तुम मोहब्बत की बातें क्यूँ नहीं करते'... हमने कहा, जो लफ्जों में बयाँ हो, वो मोहब्बत हम नहीं करते..! उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं, इश्क़ ही इश्क़ की क़ीमत हो ज़रूरी तो नहीं ! जिन्दगी जला दी हमने जब जलानी थी.. अब धुएँ पर तमाशा क्यों और राख पर बहस कैसी ! काम सब ग़ैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं, और हम कुछ नहीं करते हैं, ग़ज़ब करते हैं ! इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ ऐ 'फ़राज़' इन लकीरों में हस्रतो के सिवा कुछ भी नही ! कह देना समुंदर से हम ओस के मोती हैं, दरिया की तरह तुझसे मिलने नही आएँगे ! आपकी नज़रों में सूरज की है जितनी अज़्मत , हम चराग़ों का भी उतना ही अदब करते हैं ! ...