लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं;
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए,
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं.
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं;
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए,
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं.
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं,
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं.
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था,
काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं,
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं.
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे,
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे;
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव,
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे.
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव,
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे.
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था,
में बच भी जाता तो मरने वाला था;
मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए,
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था.
मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए,
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था.
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं;
आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत,
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं.
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो,
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो;
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो,
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो.
जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से,
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से;
बादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिए,
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से.
इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ,
मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ;
हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले,
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ;
एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी;
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ.
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए,
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए.
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं;
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी,
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं.
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं,
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं;
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं,
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं.
बनके एक हादसा बाजार में आ जाएगा,
जो नहीं होगा वह अखबार में आ जाएगा;
चोर, उचक्कों की करो कद्र;
कि मालूम नहीं, कौन कब कौन सी सरकार में आ जाएगा.
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना,
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना;
नशा वेसे तो बुरी शे है, मगर
“राहत” से सुननी हो तो थोड़ी सी पिला भी देना.
जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो, यह बहरों का इलाका है जरा जोर से बोलो.
सूरज, चाँद,सितारे मेरे साथ में रहे ,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे
शाखों से जो टूट जाये वो पत्ते नही है हम ,
आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे.
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया,
दोस्ती जब किसी से की जाये,
जो शख्स तुमसे पहले यहाँ तख्तनशीं था,
उसको भी खुदा होने पर इतना ही यकीं था.
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं,
सरहदों पर तनाव हे क्या,
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या;
शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं,
गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं.
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे,
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं,
लवे दीयों की हवा में उछालते रहना,
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना;
में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा,
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना.
नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे,
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया,
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया;
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं,
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया.
दोस्ती जब किसी से की जाये,
दुश्मनों की भी राय ली जाए;
बोतलें खोल के तो पि बरसों,
आज दिल खोल के पि जाए.
जो शख्स तुमसे पहले यहाँ तख्तनशीं था,
उसको भी खुदा होने पर इतना ही यकीं था.
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं,
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं;
जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,
सज़ा ना देके अदालत बिगाड़ देती है.
जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,
सज़ा ना देके अदालत बिगाड़ देती है.
सरहदों पर तनाव हे क्या,
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या;
शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं,
गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं.
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे,
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे;
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल,
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे.
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं,
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं;
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो;
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं.
लवे दीयों की हवा में उछालते रहना,
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना;
में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा,
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना.
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे;
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए,
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे.
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